अवधि :
40-50 मिनट

भाग 6.1 से 6.3 के व्यायामों का अभ्यास कम से कम 2-3 सप्ताह तक किया जाना चाहिये और भाग 6.4 का अभ्यास लगभग 4-6 सप्ताह तक।

मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, और आज्ञा चक्र पर ध्यान

  • एक के बाद एक (हर एक लगभग 10 मिनट तक) अपना ध्यान मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धि चक्र और आज्ञा चक्र पर लगायें जब तक कि आप संबन्धित केन्द्रों को भलीभाँति महसूस न करने लगें। एक पर्यवेक्षक की स्थिति में शान्त और तनावमुक्त बने रहें।

इन चक्रों के गुणों और प्रतीकों का विश्लेषण* [1]

  • पूर्व अभ्यास की ही भांति चारों चक्रों को, एक के बाद दूसरे को महसूस करें।

  • उनके गुणों, प्रतीकों और प्रभावों को दृश्यमान और विश्लेषण करें।

इन चक्रों पर श्वास के सामंजस्य के साथ ध्यान करना

  • श्वास और मंत्र "सो हमं" के साथ चार चक्रों पर अपने ध्यान को जोड़ें। पूरक के साथ आन्तरिक रूप में "सो" ध्वनि और रेचक के साथ "हमं" सुनें।

चक्रों की ऊर्जा को जागृत करना

  • पूर्व व्यायाम की ही भांति चार चक्रों पर अपने ध्यान को श्वास और मंत्र "सो हमं" के साथ जोड़ें। अब श्वास को ऊर्जा या प्रकाश की एक किरण के रूप में परिकल्पित करें। पूरक के साथ यह प्रकाश मणिपुर चक्र से आज्ञाचक्र में प्रवाहित होता है। रेचक के साथ यह आज्ञाचक्र से मणिपुर चक्र में प्रवाहित होता है। हृदय केन्द्र दोनों दिशाओं से स्पर्श होता है और प्रकाश से भर जाता है। (लगभग 10 मिनट)

  • पर्यवेक्षण करें कि प्रकाश की किरण का रंग कौनसा होता है और आपके भीतर उस समय क्या भावनाएं जागृत होती हैं जब श्वास चक्रों से प्रभावित होती है। (लगभग 10 मिनट)

  • अपनी कल्पना में श्वास या प्रकाश की किरण का इस प्रकार मार्गदर्शन करें कि एक चक्र पैदा हो जाये। रेचक के साथ महसूस करें कि रीढ़ के माध्यम से आज्ञाचक्र से मणिपुर चक्र तक नीचे की ओर श्वास प्रवाहित हो रही है और फिर पूरक के साथ शरीर के सम्मुख से आज्ञाचक्र की ओर ऊपर प्रवाहित हो रही है। (लगभग 10 मिनट)

  • आगे भी 10 मिनट तक अपने मंत्र के साथ ध्यान लगाना जारी रखें और अनाहत चक्र या आज्ञा चक्र के भीतर आकाश की ओर अपनी चेतना को निर्देशित करें, विश्राम करें। महसूस करें कि आप अपने स्व के साथ एक हो गये हैं।