अवधि :
10 - 20 मिनट

निम्नलिखित 6 व्यायाम एक दूसरे पर बनते जाते हैं। इनका अभ्यास इस प्रकार से किया जाता है कि प्रत्येक भाग की तकनीक वास्तव में अभ्यास का एक मुख्य बिन्दु बन जाता है, किन्तु आप ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते हैं त्यों-त्यों वर्तमान भाग के साथ-साथ पूर्ववर्ती भाग का भी एक संक्षिप्त रूप में अभ्यास किया जाता है।

आपके चारों ओर अन्तरिक्ष (आकाश) के प्रति जागरूकता

  • आप जिस आकाश में हैं उसके प्रति चेतना और आकाश में आपके स्थान के बारे में जागरूक हों।

  • आप अपने शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अस्तित्व के बारे में चेतन हों।

शारीरिक जागरूकता और निश्चलता

  • अपने शरीर के प्रति सचेत हों।

  • यदि आपके शरीर के भाग तनाव में हों, तो तनाव को धीरे-धीरे तब तक छोड़ते रहें जब तक कि पूरा शरीर गहराई से तनाव-मुक्त न हो जाए।

  • ध्यान-मुद्रा में अपने शरीर की पूर्ण निश्चलता को महसूस करें।

शरीर और श्वास की एकता के प्रति जागरूकता

  • अपनी सामान्य श्वास को महसूस करें और श्वास प्रक्रिया के प्रति सचेत रहें।

  • शरीर और श्वास की एकता के प्रति जागरूक रहें। पूरक के साथ शरीर के फूलने और रेचक के साथ शरीर के सिकुडऩे का निरीक्षण एवं उसका अनुभव करें।

  • यह अनुभव करें कि श्वास नाक के द्वारा न केवल अन्दर ली जाती है अपितु शरीर के माध्यम से भी अन्दर जा रही है। अनुभव करें कि श्वास का प्रवाह किस प्रकार पूरे शरीर में एक धार के रूप में फैल रहा है।

आन्तरिक शुद्धि पर ध्यान देना

  • देखें और अनुभव करें कि रेचक के साथ किस प्रकार शरीर से बाहर व्यर्थ के पदार्थ और जीव विष चले जाते हैं।

  • देखें और अनुभव करें कि रेचक के साथ किस प्रकार नकारात्मक विचार और भावनाएं दूर की जाती हैं।

  • शरीर और मन के आंतरिक शुद्धिकरण को महसूस करें- किस प्रकार शरीर और मन ताजगी अनुभव करते हैं।

प्राण के स्वागत, आगमन पर ध्यान देना

  • यह देखें और महसूस करें कि किस प्रकार ब्रह्माण्ड - ऊर्जा आपके शरीर में पूरक के साथ-साथ प्रवाहित होती है।

  • ऊर्जा को प्राप्त करें और महसूस करें कि किस प्रकार आपके शरीर के प्रत्येक कोष में यह प्रवाहित होती है और पूरे शरीर में बँट जाती है।

  • देखें और अनुभव करें कि किस प्रकार आपका मन स्पष्ट हो जाता है और प्रकाश, शक्ति, प्रसन्नता और आशावाद हर पूरक के साथ भर जाता है।

  • इसके प्रति जागरूक रहें कि किस प्रकार हर श्वास के साथ आप निस्तब्ध, अधिक संतुलित और ताजा हो जाते हैं।

अनाहत चक्र (हृदय केन्द्र) पर ध्यान देना

  • अपना ध्यान छाती के केन्द्र की ओर दें और इस क्षेत्र में श्वास के धीरे-धीरे प्रवाह का अनुभव करें।

  • अपने हृदय की शान्त और समान धड़कन अनुभव करें और इसके माध्यम से तनाव हीनता को गहनतर करना जारी रखें।

  • अन्त में अपनी एकाग्रता को छाती के केन्द्र, हृदय केन्द्र पर ले आयें, अपनी चेतना को अपने हृदय में डुबो दें-निमग्न करा दें।

  • अपने हृदय के केन्द्र में प्रकाश की एक धारा देखें। प्रकाश और परम सुख का अपने हृदय के केन्द्र (हृदयाकाश) में अनुभव करें।