प्रारंभिक स्थिति :
ध्यान मुद्रा।

ध्यान दें :
विशुद्धि चक्र पर।

श्वास :
गहरा श्वास लें और श्वास को रोके रखें।

दोहराना :
3 से 5 चक्र।

अभ्यास :
गहरी श्वास लें और श्वास को रोक कर रखें। हाथों को घुटनों पर रखें। कंधों को ऊंचा उठायें और पीठ को सीधा रखते हुए शरीर को थोड़ा-सा आगे झुकायें। ठोड्डी को जोर से छाती से या हंसलियों के बीच में दबायें, जिससे श्वास नली और ग्रास नली पूरी तरह बंद हो जाये। > विशुद्धि चक्र पर ध्यान दें और श्वास को जितनी देर तक सुविधाजनक हो उतनी ही देर तक रोकें। > सिर उठायें और लंबा रेचक करते हुए प्रारंभिक स्थिति में लौट आयें। > सामान्य श्वास के साथ कुछ देर तक इसी स्थिति में बने रहें।

लाभ :
यह व्यायाम आन्तरिक ऊर्जा केन्द्रों, विशेष रूप से विशुद्धि चक्र को जागृत करता है। यह श्वास को काफी लंबे समय तक रोकने की योग्यता को बढ़ाता है और ध्यान, एकाग्रता की क्षमता को विकसित करता है। यह गले के रोगों के लिए लाभकारी है और ग्रीवा कार्य को विनियमित करता है।

सावधानी :
श्वास को केवल उतनी ही देर रोकना चाहिए, जितनी देर आसानी से संभव हो। यदि कोई ग्रीवा समस्या हो तो इस अभ्यास को करने से पूर्व चिकित्सक से परामर्श कर लें।