"जितनी अधिक बुद्घिमानी आप रखते है, आपका मन उतना ही अधिक विनीत हो जाता है। आप जितनी अधिक समझ विकसित करते हैं, आपके कर्म उतने ही अधिक सहायक हो जाते हैं। आपके हृदय में अच्छाई जितनी अधिक होती है, आप प्रत्येक जीव के लिये उतना ही अधिक प्रेम अनुभव करते हैं।"

अब हम आसनों के अन्तिम और उच्चत्तम स्तर पद्मासन (कमल) और पद्मासन की विभिन्न मुद्राओं के अभ्यास पर आते हैं।

शीर्षासन के साथ, पद्मासन सर्वोच्च और ''शाही" आसन के रूप में जाना जाता है। यह मुद्रा इतनी महत्त्वपूर्ण कैसे है? पद्मासन एकमेव बैठी मुद्रा है, जिसमें रीढ़ बिल्कुल सीधी रहती है जिसमें फेफड़े श्वास लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र रहते हैं। सबसे बढ़कर, यह रीढ़ के साथ वाले चक्रों को खोलता है और उनके नाड़ी केन्द्रों को सक्रिय करता है। जैसे ही प्रत्येक चक्र के गुणों की प्रतीति होने लगती है, योग का अभ्यर्थी, चेतना के भिन्न-भिन्न स्तरों से परिचित होने लगता है। इसी कारण योगी लोग सदैव पद्मासन में ही गहन ध्यान के लिए बैठते हैं।

'कमल' योगी और योग के अभिलाषी के लिए अर्थों से परिपूर्ण एक प्रतीक है। पुराणों में, कमल का खिलना सौन्दर्य, शुद्धता और आध्यात्मिकता को प्रस्तुत करता है, क्योंकि यह सदैव पानी की सतह के ऊपर तैरता रहता है, इसलिए यह हमें प्रतिदर्श (मॉडल) भी प्रस्तुत करता है कि इस संसार में कैसे जियें और कर्म करें। जल, माया (विश्व) का प्रतीक है और कमल खिलना मनुष्य का। मानव और संसार (विश्व) सुदृढ़तापूर्वक एक-दूसरे से बंधे हुए, संबद्ध हैं और जिस प्रकार कमल का खिलना केवल जल में ही हो पाता है उसी प्रकार मानव और अन्य प्राणियों का विकास और अनुभूति भी इसी संसार में संभव है। जिस प्रकार कमल जल को बिना छूए सतह पर ही तैरता रहता है, उसी प्रकार योगी भी इस संसार में रहते हैं जो प्रलोभनों, सुखों, कठिनाइयों और दुर्भाग्यों से आन्तरिक रूप से अछूते रहते हैं। हर प्रकार से वे स्वतंत्र हैं। यद्यपि भावनाओं और इच्छाओं की लहरों, थपेड़ों से माया उनको इधर उधर भटकाती रहती है।

योगी के लिए कमल का खिलना दिव्य चेतना और प्रेम का प्रतीक है। जो लोग कमल के खिलने पर ध्यान लगाते हैं वे स्वयं के भीतर इसकी परिपूर्णता अनुभव कर सकते हैं। जो दिव्य कमल को अपने भीतर पा लेते हैं, उनके लिए खोज पूरी समाप्त हो जाती है।

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावाशिष्यते ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

ईश्वर पूर्ण है और विश्व पूर्ण है,

क्योंकि पूर्णता मात्र पूर्णता से ही आती है।

पूर्णता का प्रत्येक भाग समान रूप से पूर्ण है।

इससे अंतर नहीं पडता कि पूर्णता से कितना कुछ ले लिया जाता है, यह सदैव पूर्ण ही रहता है।

ॐ शांति: शांति: शांति: