योग का नियमित अभ्यास वृद्धावस्था में मानव-शरीर को ओजस्वी और स्वस्थ बनाये रखेगा। योग व्यायामों का मानव शरीर की सभी प्रणालियों पर जिनमें ग्रन्थि, अंग और नाड़ी तंत्र सम्मिलित हैं, प्रत्यक्षत: स्वास्थ्य प्रदर्शित करने वाले प्रोत्साहनकारी और विनियमित करने वाला प्रभाव पड़ता है। इनका पूरे शरीर पर शुद्धकारी और पुन: यौवन प्रदान करने वाला प्रभाव होता है। योग आसनों के अभ्यास की अवधि में शरीर के पृथक-पृथक भागों को खींचने और सिकोडऩे की वैकल्पिक लयबद्ध पद्धति से कोष्ठकों में से शिथिल निष्क्रिय लसीका बाहर आने लगती हैं। हर बार संकुचन (सिकुडऩ) के साथ रक्तापूर्ति में थोड़ी सी कमी हो जाती है और हर खिंचाव के साथ वही भाग ऑक्सीजन और पौष्टिक तत्त्वों वाले ताजा रक्तापूर्ति से भर जाते हैं। इस प्रकार अंगों और मांसपेशियों को सर्वाधिक पोषण मिलता है, रक्त संचरण सुधरता है और विषकण तथा व्यर्थ पदार्थ शरीर से बाहर निकल जाते हैं।

योग आसनों के खिंचाव चरण में शरीर के कोषों के मध्य मूल आधार पर हल्का दबाव पड़ता है। यह आधार कोषों के मध्य सूचना के प्रसारण करने के लिए उत्तरदायी है। योग आसन इस कार्य में सुधार लाते हैं जिससे निष्क्रिय नाली खुल जाती है, शरीर के स्नायुओं का ठसाठस भरा होना कम हो जाता है और गुर्दों के माध्यम से व्यर्थ तत्त्वों को बाहर जाना बढ़ जाता है। शरीर की निष्क्रिय प्रणाली भोजन में वसायुक्त पदार्थों को रक्त कोषों में प्रवाहित करने के लिए जिम्मेवार है और यह शरीर के स्नायुओं में से व्यर्थ तत्त्वों को समाप्त करने की भी जिम्मेवार हैं। लसिका तंत्र का रोग निरोधक कार्य में प्रमुख महत्त्व है, अत: सिद्धान्त रूप में रोग निरोधक तंत्र योग आसनों के अभ्यास से बहुत सहायता प्राप्त करता है। लसिका तंत्र का एक अन्य अंग जो खींचने और तनावहीन होने से अत्यधिक लाभ प्राप्त करता है वह है- चर्म जो शरीर का सबसे बड़ा अवयव है। योग अभ्यासों से चमड़ी की पुन: रूप धारण करने की सुनम्यता बनी रहती है और इस प्रकार यौवन दिखाई देने लगता है।

विशेषरूप से उल्टी मुद्रायें, जैसे विपरीत-करणी मुद्रा, सर्वांगासन और शीर्षासन शरीर के ऊपरी भाग में रक्तापूर्ति में सुधार लाते हैं। शरीर के निचले भाग में रगों की सिकुडऩ कम हो जाती है और रक्तचाप विनियमित होता है। गतिशील (सक्रिय) आसनों का अभ्यास रक्तचाप को कुछ बढ़ा देता है और इस प्रकार परिचालन बढ़ जाता है। तथापि आसनों (विशेष रूप से योग निद्रा के गहन विश्राम) के अभ्यास के बाद विश्राम प्रक्रिया सहानुभूतिप्रद नाड़ी तंत्र से परासहानुभूतिप्रद नाड़ी तंत्र की ओर एक सजग कार्य परिवर्तन ला देता है। यह परिवर्तन उच्च रक्तचाप और वर्धित नाड़ी दर से सबंधित सक्रियता से कम हो गये रक्त चाप और तनावहीन नाड़ी दर की स्थिति तक है।

परिणामस्वरूप स्वत: नाड़ी तंत्र, जो सामान्यत: हमारे सचेत नियन्त्रण से परे होता है, सहानुभूतिप्रद और परासहानुभूति प्रद नाड़ी तंत्रों में कार्यगत संतुलन स्थापित करके योग व्यायामों को परोक्ष रूप से सहायता प्रदान करता है। अत: स्रावी तंत्र भी अधिकतर इसी प्रकार विनियमित होता है। यह हृष्ट-पुष्ट रहने की भावना आन्तरिक संतुलन सुव्यवस्था और अन्ततोगत्वा सर्वाधिक स्वास्थ्य प्रदान करता है।

Dr. Med. Ingrid Gebhardt