अवधि :
20-30 मिनट

ध्यान के निम्नलिखित भागों के प्रत्येक व्यायाम स्वतंत्र व्यायाम है। प्रारंभ में मूल-स्तर का अभ्यास 10 मिनट के लगभग किया जाता है और फिर ध्यान संबंधित व्यायाम स्तर के अनुसार जारी रहता है।

व्यायाम के प्रत्येक भाग का अभ्यास कम से कम दो सप्ताह तक किया जाना चाहिये।

मंत्र 'सो हमं' के साथ श्वास पर ध्यान देना

  • अपना ध्यान छाती के केन्द्र की ओर करें और इस क्षेत्र में श्वास का धीमा प्रवाह परखें। (लगभग 10 मिनट)

  • 'सो हमं' के रूप में श्वास की अन्तध्र्वनि सुनें। सहज स्वाभाविक श्वास की आवाज को सुनें, पूरक के साथ ध्वनि 'सो' उठती है, रेचक के साथ 'हमं', लगभग 10 मिनट।

मन्त्र 'सो हमं' के साथ श्वास पर गहन होती हुई एकाग्रता

  • पूर्व व्यायाम की ही भांति छाती में श्वास के प्रवाह के प्रति जागरूक रहें। (लगभग 5 मिनट)

  • मंत्र 'सो हमं' - वह 'मैं हूँ' का प्रत्येक श्वास के साथ ध्यान करें। (लगभग 15 मिनट)

    • पूरक करते हुए अक्षर 'सो' को मन में दोहरायें और इसी के साथ-साथ नाभि से गले तक श्वास की चेतना की गति का अनुसरण करें। अनुभव करें कि एक गिलास (पात्र) में पानी भरने के समान फेफड़े भर रहे हैं।

    • रेचक करते हुए अक्षर 'हमं' को मन में दोहरायें और इसी के साथ-साथ गले से नाभि तक श्वास की चेतना का अनुसरण करें। अनुभव करें कि एक गिलास पानी खाली होता है वैसे ही फेफड़े खाली हो रहे हैं।

    • केवल मंत्र के बारे में ही सोचने का यत्न करें। जब अन्य विचार आयें तो उनको नकारें नहीं और न ही उनको पकड़ लें। उन विचारों को परखें और उनको सिर्फ गुजर जाने दें।

  • श्वास के साधारण पर्यवेक्षण की ओर फिर लौट आयें। (लगभग 5 मिनट)

आन्तरिक आकाश (चिदाकाश) पर एकाग्रता

  • आज्ञा-चक्र के क्षेत्र में मस्तक के पीछे (बोहों के केन्द्र) आन्तरिक आकाश (खाली जगह) को देखें। केवल इसके बारे में कुछ सचेत हो जायें क्योंकि यह आपके आन्तरिक नेत्र के सामने दिखाई देता है। बिना कुछ देखे या कल्पना किये, पूरी तरह तनावहीन बने रहें। (लगभग 15 मिनट)

  • अब अपने आन्तरिक आकाश में अपने आप को देखें। पर्यवेक्षण करें कि किस प्रकार समय-समय पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे आकाश आपके भीतर है या फिर जैसे आप आकाश के भीतर थे। (लगभग 15 मिनट)

विचारों का पर्यवेक्षण

  • अपने विचारों का आना और जाना भली-भाँति देखें। न तो विचारों के आवागमन का मूल्यांकन करें न ही उनको प्रभावित करें। कुछ विचारों को अपने से दूर करने का यत्न नहीं करें और न ही उनको पकड़े रहें। एक तटस्थ पर्यवेक्षक की भाँति बने रहें। (लगभग 15 मिनट)

  • विचारों को प्रभावित किये बिना उनका पर्यवेक्षण जारी रखें। अलग-अलग विचारों की परीक्षा करें और उन विचारों से अपने संबंधों की खोज करें। यह पता लगायें कि आप उनका मूल्यांकन किस प्रकार करते हैं (अच्छा/बुरा, सुविधाजनक/ असुविधाजनक, सुन्दर/असुन्दर) और आप उनका मूल्यांकन इस प्रकार क्यों करते हैं। (लगभग 15 मिनट)

चेतना का भूतकाल में विस्तार

  • अपनी चेतना को भूतकाल में ले जायें। बीती घटनाओं को क्रमिक रूप से स्मरण करने का यत्न करें। वर्तमान से शुरू करके। आज से प्रारंभ कर वापस कल में जायें, और फिर परसों में, पिछले सप्ताह, पिछले मास, पिछले वर्ष में। जहाँ तक आप कर सकते हैं एक अनुभव के बाद दूसरे अनुभव को स्मरण करने का यत्न करें। (लगभग 10 मिनट)

  • फिर वर्तमान में घटित अनुभवों पर उलटे क्रम से लौट आयें। (लगभग 10 मिनट)

  • अपने मन को तनावहीन करें और विचारों के आवागमन का पर्यवेक्षण करें। (लगभग 5 मिनट)

गायत्री मंत्र पर ध्यान

  • उच्चारण करें या मानसिक रूप से, गायत्री मंत्र को 5 बार दोहरायें :

    ॥ ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहिधियो यो नः प्रचोदयात् ॥

    "ॐ भूर्भुव: स्व:

    तत् सवितुर्वरेण्यम्

    भर्गो देवस्य धीमहि,

    धियो यो न: प्रचोदयात्॥"

    हम उस प्रशंसनीय और दयालु पर ध्यान दें,

    उस दिव्य प्रकाश पर, जो हमारे हृदयों में निवास करता है।

    वह प्रकाश हमारी समस्त योग्यताओं को जाग्रत करे।

    हमारे ज्ञान का मार्गदर्शन करे एवं हमारी समझ को देदीप्यमान कर दे।

  • इस व्यायाम का समापन शांति मंत्र "ॐ शांति: शांति: शांति:" के साथ करें। अपने हृदय के आंतरिक आकाश (हृदयाकाश) में विश्राम करें। (लगभग 5 मिनट)

प्रेम से खुशियां आती हैं, निराशा नहीं।

प्रेम तो आन्तरिक समझ और उत्भुदय है, उत्थान है, पदार्थ साक्षी तर्क-वितर्क का विषय नहीं।

प्रेम एक निश्चित सुरक्षा की स्थिति अर्थात् संशय रहित मानसिक आधार देता है, जहां कोई आवश्यकताएं नहीं होती।

ईर्ष्या जनित विषय रहित प्रेम स्वतंत्रता चाहता है।