प्रारंभिक स्थिति :
पैरों को सीधा रखकर बैठें।

ध्यान दें :
पीठ और नितम्ब (कूल्हे)पर।

श्वास :
शारीरिक क्रिया के साथ समन्वय रखें।

दोहराना :
प्रत्येक पैर के साथ पाँच बार।

अभ्यास :
टांगों को सीधा रखकर बैठें। पीठ सीधी और तनाव रहित रहे। दायें घुटने के नीचे से अँगुलियों को पकड़ लें और दायीं टाँग को फर्श से थोड़ा-सा ऊपर उठायें। > गहरी श्वास लें। > रेचक करते हुए दायें घुटने को मोड़ें और जाँघ को शरीर की तरफ खींचें। ध्यान रखें कि पीठ सीधी रहे। सिर को आगे की ओर झुकायें और घुटने को मस्तक या नाक से छुएं। ऐसा करते समय पीठ थोड़ी-सी झुक सकती है। > पूरक करते हुए सिर को ऊपर उठायें। शरीर के ऊपरी भाग को सीधा रखें और टांग को सीधा फैलाएं। फर्श को पैर से न छुआएं। > यह व्यायाम पाँच बार दायीं टांग से और पाँच बार बायीं टाँग से करें। > फिर प्रारंभिक स्थिति में लौट आयें।

लाभ :
इस व्यायाम से पीठ और नितम्बों की मांसपेशियां फैल जाती हैं। रीढ़ और कूल्हों में लोच बढ़ता है और गर्दन को आराम पहुँचता है। यह आसन शरीर को मजबूत करता है और सभी जोड़ों में रक्त परिसंचालित करता है। यह आसन क्रमी (त्रिक) और नितम्ब संबंधी शिकायतों को दूर करने में विशेष रूप से लाभप्रद होता है। शरीर सुडौल होता है तथा पाचन शक्ति बढ़ाता है।

आसन इन निम्नलिखित श्रेणियों में शामिल किया जाता है:
रीढ़ की हड्डी की मांसपेशियों को आराम देने व कूल्हे के दर्द की समस्या को रोकने हेतु आसन और व्यायाम
पाचन सम्बन्धी समस्याओं को निराकरण के लिए आसन और व्यायाम
पेट के नीचे के भाग की ग्रन्थियों को जाग्रत करना और संचार बढ़ाने हेतु आसन और व्यायाम
माहवारी समस्याओं के लिए आसन और व्यायाम
कूल्हों के जोड़ों की गतिशीलता बढ़ाने हेतु आसन और व्यायाम