प्रारंभिक स्थिति :
वज्रासन।

ध्यान दें :
शरीर की शिथिलता और स्वाधिष्ठान चक्र पर।

श्वास :
शारीरिक क्रिया के साथ समन्वित, मुद्रा में सामान्य श्वास।

दोहराना :
2-3 बार।

अभ्यास :

  • भिन्न प्रकार (क):
    वज्रासन में बैठें। रीढ़ सीधी, बाजू जांघों पर हैं। पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें और आँखें बन्द कर लें। > पूरक करते हुए बाजुओं को सिर के ऊपर से उठायें। > रेचक करते हुए पीठ को सीधा रखें और धीरे-धीरे कूल्हों से आगे झुकें जब तक कि मस्तक फर्श को न छू जाये। बाजुओं को शरीर के पास ही आराम दें। हथेलियाँ ऊपर की ओर होंगी। > सामान्य श्वास लेते हुए इस स्थिति में यथासंभव देर तक सुविधा में रहें और सचेत रहते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। > पूरक करते हुए पीठ को सीधा रखते हुए शरीर को सीधा करें और बाजुओं को सिर के ऊपर से उठायें।> रेचक करते हुए प्रारम्भिक स्थिति में लौट आयें।

  • भिन्न प्रकार (ख)
    (बिना दृष्टांत): > पूरक करते हुए वज्रासन से घुटनों पर आ जायें जिसमें बाजू कंधे की ऊंचाई तक सामने उठे रहेंगे। > रेचक करते हुए धीरे-धीरे इतना आगे झुकेंकि मस्तक फर्श को छू ले। इसी समय बाजुओं को पीठ के पीछे लाते हुए टखनों को पकड़ लें। > सामान्य श्वास में इस स्थिति में रहें, आँखें बन्द कर लें और सचेत रहते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। > पूरक करते हुए घुटनों पर आ जायें और बाजुओं को सामने वापस ले आयें। > रेचक करते हुए प्रारम्भिक स्थिति में वापस आ जायें।

आध्यात्मिकता के विकास के लिए इस स्थिति में लगभग 5 मिनट तक बने रहें।

लाभ :
प्रमुख रूप से यह आसन एकाग्रता और स्मृति में सुधार करता है। यह मन को शान्त करता है और निद्रा की व्याधियों और घबराहट को दूर करता है। निचले पेट की अनेक समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है, जैसे कब्ज और अन्य पाचन अव्यवस्थायें। भिन्न प्रकार (क) की अश्विनी मुद्रा (गुदा मांसपेशियों की बारम्बार होने वाली सिकुडऩों की समस्या) के साथ अवसाद को भी दूर करता है।

सावधानी :
उच्च रक्तचाप, प्रमस्तिष्क अव्यवस्था, सबल बाय, काला पानी या चक्कर आने पर इस आसन को न करें।