अवधि :
30-40 मिनट

इस व्यायाम के प्रत्येक भाग का अभ्यास कम से कम तीन सप्ताह तक करना चाहिये।

त्राटक का अभ्यास*

  • त्राटक का अभ्यास एक मोमबत्ती की लौ पर करें। (3 चक्र, प्रत्येक चक्र लगभग 5 मिनट) इस समय अपना मंत्र भी मन में दोहराते रहें।

  • मंत्र के साथ आगे भी 10 मिनट तक ध्यान जारी रखें और अपनी चेतना को अनाहत-चक्र या आज्ञा-चक्र के आन्तरिक आकाश की ओर निर्देशित करें।

आन्तरिक प्रकाश का मानस-दर्शन

  • अपने आन्तरिक आकाश में एक चमकते प्रकाश का मानस-दर्शन करें। इसका मानस-दर्शन तब तक करें जब तक यह प्रकट न हो जाये। अभ्यास के द्वारा जब विचार थम जाते हैं, आन्तरिक प्रकाश दिखने लगता है। (लगभग 30 मिनट)

आन्तरिक प्रकाश की चमक (लालिमा)

  • स्वयं को प्रकाश के प्रभा-मण्डल के पुंज से घिरा हुआ चित्रित करें। स्वयं को सभी दिशाओं से देखें। प्रकाश की गहनता और रंगों को देखें। (लगभग 15 मिनट)

  • स्वयं अपने भीतर देखें और आपके अपने भीतर से चमकने वाले प्रकाश के स्रोत को ढूंढ़ें। स्वयं को मुक्त कर दें और अपने आन्तरिक प्रकाश की चमक को अधिकाधिक दृढ़ता के साथ बाहर जाने दें, यह बाहर की ओर लगातार फैलती जाएगी। (लगभग 15 मिनट)

भक्ति ध्यान

  • 'ॐ' का उच्चारण तीन बार करें।

  • मणिपुर-चक्र से सहस्रार-चक्र तक जाने वाली ॐ ध्वनि के स्पन्दन को महसूस करें। ॐ स्पन्दन प्रकाश के रूप में आपके पूरे शरीर में प्रवाहित होता है और आगे ब्रह्माण्ड में ज्वलायमान हो जाता है। ॐ ध्वनि आपके चारों ओर एक सुरक्षा-आवरण बना देती है जो सभी नकारात्मक स्पन्दनों को दूर रखती है।

  • निम्नलिखित चित्रों, भावों या विचारों में से हर एक के साथ 3-4 मिनट रहें :

    • तनावहीन हों। अपने शरीर को और इसकी स्तब्धता को महसूस करें। अपनी पूर्णता में अपने अस्तित्व के प्रति सचेत हों- शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप में। विचलित हुए बिना केवल यही प्रयत्न करें "मैं यहाँ हूँ।"

    • अब अपनी अंतरात्मा स्व में गहन डुबकी लगाएं। इसे समझें और अनुभव करें। प्रेम (भक्ति) से परिपूर्ण, अपने आंतरिक स्व और अपने चतुर्दिक का पर्यवेक्षण करें। भक्ति का अर्थ है अनुकंपा, क्षमा-भाव, संज्ञान, प्रेम और अपने इष्ट देवता के प्रति निष्ठा, आपके हृदय में प्रकाश। अपने हृदय को एवं अपने भीतर और अपने चहुँ ओर प्रकाश की मौजूदगी अनुभव करें, तथा अपने भीतर के प्रकाश को दृढ़तर होने दें।

    • ब्रह्माण्ड की उस ऊर्जा को महसूस करें जो प्राण के रूप में आपके पूरे शरीर में प्रवाहित होती है। प्राण के उत्तम स्पर्श को अपनी त्वचा और अपने हृदय में अनुभव करें। क्षमा-वृत्ति, अनुकंपा, दया, प्रेम, समझ और निष्ठा/भक्ति को अपने हृदय के गुणों के रूप में पहचानें और अपनी सर्वाधिक प्रेम-भावनाओं को सभी जीवधारियों तक फैलने दें। प्रकृति, पौधों, पशुओं और मानव-सभी जीवधारियों के साथ अपने प्रेम का अनुभव करें।

    • अपने हृदय में इन सुन्दर भावनाओं, अनुभूतियों के साथ रहें। यह भाव रखें कि आपके विचार संपूर्ण विश्व, ब्रह्माण्ड में पहुंचते हैं। सचेत रहें कि प्रत्येक विचार का एक प्रभाव होता है और यह किसी भी समय अपने रूप में अवश्य प्रकट होगा।

    • अपने जीवन को ईश्वर, प्रभु के हाथों में सौंप दें। स्वयं से कहें "प्रभु, मैं अपनी ओर से संभावित, सभी कुछ कर चुका हूं। मैं अब अपना जीवन आपके हाथों में सौंपता हूं। मैं अपने सभी कर्मों को आपके हाथों में सौंपता हूं, चाहे वे सत्कर्म हों या दुष्कर्म। कृपया उनको स्वीकार करें और मेरे जीवन को मार्गदर्शन प्रदान करते रहें। मेरे विचार, मेरा शरीर और मेरा मन हर किसी के साथ व्यवस्था, सामंजस्य में रहे। एक दिन मेरा अपना स्व, मेरा दिव्यांश, आपके साथ मिल जाये। आप में आत्म-सात हो जाये"।

    • इन विचारों के साथ अपने हृदय से इन गहनतम भावनाओं को प्रवाहित करते रहें। अपनी भावनाओं और विचारों को खाली आकाश में न भेजें, अपितु जिस दिव्यात्मा पर आप श्रद्धा रखते हों, उसके पास भेजें। ईश्वर केवल एक ही है, और ईश्वर आपके पास उसी रूप में आता है जिसमें आप विश्वास करते हैं और जिसकी आप आराधना या प्रार्थना करते हैं।

    • अपने आंतरिक मंदिर में ही रहें और अपने हृदय में स्व-इष्टित दिव्यात्मा के अस्तित्व को महसूस करें। अपनी दिव्य-विभूति से बात करें और अपने हृदय में एक सुन्दर पूजा-स्थल बनायें। इसमें उन्हीं आराध्य का एक चित्र या प्रतीक स्थापित कर लें।

    • इसी के साथ-साथ आप अपने सभी कार्यों को भी पूर्ण रूप में देखते जाएं। आप पूजा-स्थल और उसके समक्ष अपने ही रूप को पाते हैं। अपने पूजा-स्थल (वेदी) को प्रेम और श्रद्धा से तैयार करें। एक मोमबत्ती और सुगंधित अगरबत्ती जलायें व पुष्पों से इसे सजायें। आप सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ दें, जो आप दे सकते हैं-आपका प्रेम, आपके सुन्दर व अच्छे गुण, आपका सर्वस्व दे दें। इसे महान और गहन प्रसन्नता के साथ तैयार करें। शांति और निर्द्वन्दता आपके चहुं ओर से प्रस्फुटित होती है। आपके सभी डर और समस्याएं दूर हो जाएंगी। आप स्वयं पूरी तरह सुरक्षित और प्रेम-मय महसूस करेंगे।

    • कुछ देर तक बिना अन्य विचारों या कल्पनाओं के ही बने रहें और अपने हृदय के केन्द्र में हुए अनुभवों को ही बने रहने दें।

    • समापन पर ॐ का उच्चारण तीन बार करें और फिर शांति-मंत्र का पाठ करें।

      असतो मा सद्गमय

      तमसो मा ज्योतिर्गमय

      मृत्योरमा अमृतं गमय

      सर्वेषां स्वास्ति भवतु

      सर्वेषां शान्ति भवतु

      सर्वेषां मंगलम् भवतु

      सर्वेषां पूर्णम् भवतु

      लोक: समस्त: सुखिनो भवन्तु

      हमें अवास्तविकता से वास्तविकता के पथ पर ले जायें।

      हमें अन्धेरे से प्रकाश की ओर ले जायें।

      हमें मृत्यु से अमरता की ओर ले जायें।

      सब स्वस्थ हों।

      सब शान्ति में रहें।

      सबकी मनोकामना पूर्ण हो।

      सबको पूर्णता प्राप्त हो।

      सर्वत्र सुख व समृद्धि हो।

      ॐ त्रयम्बकम् यजामहे

      सुगन्‍धिम् पुष्टिवर्धनम्

      उर्वारुकमिव बन्‍धनान्

      मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्

      त्रिनेत्र भगवान शिव को मेरी स्तुति।

      सर्व विद्यमान कौन है?

      ईश्वर प्रकृति व हमें स्वस्थ रखे।

      ईश्वर हमें मोक्ष प्रदान करे और अमरता की ओर ले जाये।

      नाहम् कर्ता

      प्रभु दीप* [1] कर्ता

      महाप्रभु दीप कर्ता ही केवलं

      ॐ शांति: शांति: शांति:

      मैं कर्ता नहीं हूँ।

      प्रभु दीप कर्ता है।

      मात्र महाप्रभु दीप ही कर्ता है।

      ॐ शांति: शांति: शांति:।

  • अपने हथेलियों को रगडें। अपने चेहरे को हाथों से ढकें और अपने चेहरे की मांसपेशियों को गरम करें। आगे झुकें और इस ध्यान के लिए ईश्वर का या अपने उच्चतर स्व का धन्यवाद करें।