प्रारंभिक स्थिति :
वज्रासन।

ध्यान दें :
रीढ़ पर।

श्वास :
शारीरिक क्रिया के साथ समन्वित।

दोहराना :
3 बार।

अभ्यास :
वज्रासन में बैठें। हाथ जांघों पर रखें। पीठ सीधी व आराम से रहे। >पूरक करते हुए बाजुओं को कंधे की ऊँचाई में सामने की ओर सीधा रखें जिसमें हथेलियाँ नीचे की दिशा में रहेंगी। पीठ को सीधा रखते हुए घुटनों तक ऊपर उठ जायें। > रेचक करते हुए आगे झुकें और हाथों को फर्श पर रखें जिससे बाजू और टाँगें फर्श के समकोण में बन जाये। पीठ को बिल्ली की भांति ऊपर उठायें। इसी समय सिर नीचे झुका लें और नाभि की ओर देखें। पूरी रीढ़ महराब बन गई है। >पूरक करते हुए पीठ को दूसरी दिशा में ले जायें और सिर को ऊपर उठायें। पूरी रीढ़ फैल गई है और पेट की मांसपेशियों को आराम मिलता है। यथा संभव ऊपर देखें, अब छाती का अग्रभाग फैल गया है। पीठ की इस हलचल को श्वास की लय के साथ 3 बार और करें। >पूरक करते हुए वापस घुटनों पर आ जायें जिसमें बाजू सामने फैले रहेंगे। >रेचक करते हुए प्रारंभिक स्थिति में लौट आयें।

लाभ :
यह आसन रीढ़ के साथ-साथ मांसपेशियों को भी आराम पहुँचाता है जिससे यह सुनम्य और लचीली हो जाती हैं। यह पाचन को मजबूत करता है। मासिक धर्म की समस्याओं को दूर करता है और पेट और पीठ में गहरी श्वास प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है।