अवधि :
45-60 मिनट

आन्तरिक आकाश पर ध्यान एकाग्र करना

  • अपने आन्तरिक आकाश (चिदाकाश) पर ध्यान एकाग्र करें। यह वह आकाश (रिक्त स्थान) है जिसे आप अपनी आंखें बन्द करते ही अपने समक्ष देखते हैं- आपकी आन्तरिक चेतना का आकाश। मंत्र "सो हमं" के साथ संबंधित श्वास की तरफ अपना ध्यान निर्देशित करते रहना जारी रखें, श्वास सहज रूप से प्रवाहित होता है। जोर न लगायें, आकाश जैसे ही आपके समक्ष प्रस्तुत होता है, बिना कल्पना के, बिना किसी निर्णय के, उसे देखें। आन्तरिक आकाश में प्रकाश का पर्यवेक्षण करें - यह किस प्रकार बदलता है; कदाचित् बादल दिखते हों, प्रकाश की तरंगें, भिन्न-भिन्न रंग और नमूने। निश्चल, तनावहीन बने रहें और अपने अन्दर के संसार का शान्तिपूर्वक पर्यवेक्षण करें। अपनी सभी भावनाओं व विचारों को मुक्त कर लें, केवल पर्यवेक्षण करें। (लगभग 10 मिनट)

  • निम्नलिखित प्रतिमाओं, विचारों, भावनाओं में से हर एक के साथ 4-5 मिनट तक रहें।

    • अब कल्पना करें कि आप एक कमरे में बैठे हैं और आपके सामने एक मीटर की दूरी पर एक मोमबत्ती (ज्योति) जल रही है। एक आश्चर्यजनक, व्यवस्थित वातावरण पूरे कमरे में भर जाता है।

    • अपने आन्तरिक कमरे में आप स्वयं को देखें - जैसे आप मोमबत्ती के सामने बैठे हैं। आप अपने बाल, चेहरा, कान, नाक, आंखें, पलकें, कंधे, हाथ ... आपका पूरा शरीर देखें, जैसा यह वास्तव में है। आप पूरी तरह शान्त और ध्यान मुद्रा में तनावहीन बैठें।

    • यदि यह परिकल्पना सफल नहीं होती तो अपने आन्तरिक आकाश में ही बने रहें और इसे ही देखते रहें। अपने विचारों और भावनाओं के आप स्वयं साक्षी रहें और सदैव अपने श्वास और मंत्र "सो हमं" के प्रति सचेत रहें। कुछ समय बाद फिर से मोमबत्ती की कल्पना करने की कोशिश करें, जो आपके समक्ष एक छोटी मेज पर रखी हुई है और पूरे कमरे में एक धीमा प्रकाश फैला रही है। ज्योति पूरी स्थिरता के साथ शान्तिपूर्वक जल रही है - ठीक वैसे ही जैसे आपका शरीर भी पूरी तरह निश्चल है।

    • आप स्वयं को ध्यान में बैठे हुए देख रहे हैं और स्वयं को सभी दिशाओं से- पीठ से, पार्श्व से और सामने से। आन्तरिक कमरे में प्रकाश पर ध्यान लगायें। विचारों, दृश्यों और भावनाओं को गुजर जाने दें। किसी भी चीज को विकर्षित न करें या बल प्रयोग न करें। इस प्रकार देखें मानों यह एक चित्र (फिल्म) है।

    • इस ध्यान में अपनी सभी भावनाओं और विचारों को अपने आध्यात्मिक विकास और उच्चतर स्व को समर्पित करने की मंशा (इच्छा) ही बनाये रखें। अपने हृदय में भक्ति - सभी जीवधारियों, वस्तुओं के प्रति क्षमाभाव, प्रेम और आस्था को महसूस करें। इन भावनाओं से अपना हृदय भर जाने दें। आप सभी जीवधारियों के कल्याण के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करना चाहेंगे।

    • अपने मन में आप उस दिव्य आकृति के प्रति निजी प्रार्थना का गायन करें जिसमें आप विश्वास करते हैं। मन ही मन दोहराते रहें "मेरी आत्मा सभी जीवधारियों में है। सभी जीव मेरी आत्मा में हैं। सभी जीवों के प्रति मेरा प्रेम व क्षमा भाव।"

    • इन भावनाओं के माध्यम से अपने आप को उच्च स्तर का व्यक्ति हो जाने दें। सभी जीवधारियों के लिए, अपने परिवार के लिए, अपने संबंधी और मित्रों के लिए, सभी मानवों और पौधों व पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम का अनुभव करें।

    • इन भावनाओं के साथ तीन बार ॐ उच्चारण करें। ॐ की ध्वनि, जो आपको और प्रकृति की सभी वस्तुओं की रक्षा करती है, को सारे ब्रह्माण्ड में फैलने दें, सारे विश्व में अपने अच्छे विचारों को भेज दें।

  • अपने दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में रगड़ें, उनको आँखों पर रखें और पलकों तथा चेहरे की मांसपेशियों को गरम करें। हथेलियों को इकट्ठा लाएं और नीचे झुकें। ध्यान और जो कुछ आपने अनुभव किया उसके लिए अपने आन्तरिक स्व का धन्यवाद करें, अपने नेत्र खोलें।

आपका आन्तरिक मन्दिर

  • अपने आन्तरिक स्व में गहरी डुबकी लगाएं। आज्ञा, विशुद्धि, अनाहत या मणिपुर चक्र में यह महसूस कर सकते हैं। आप उस चक्र पर एकाग्र हों जहां आप सर्वोत्तम महसूस करते हों, इसके साथ स्वयं को अपने आन्तरिक स्व द्वारा मार्गदर्शित होना स्वीकार कर लें। (लगभग 10 मिनट)

  • अब अपने आन्तरिक आकाश को बाहर की ओर फैलाएं। आन्तरिक आकाश, आकाश जैसा प्रतीत होता है- असीम, अनन्त और समय एवं सीमा से परे। स्व को अपनी चेतना के सीमाहीन आकाश से भी परे जाने दें। (लगभग 15 मिनट)

  • निम्नलिखित तारतम्य एक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि आप अपना आन्तरिक आकाश किस प्रकार निरूपित कर सकते हैं। स्वयं को अपने आन्तरिक स्व और अन्तर्बोध को अपनी चेतना के आकाश के द्वारा मार्गदर्शित होने दें। निम्नलिखित प्रतिमाओं, विचारों या भावनाओं में से प्रत्येक के साथ 3-5 मिनट तक रहें।

    • आपके समक्ष हरियाली के साथ एक दृश्य आता है। सुदूर अन्तर पर आप एक छोटी सी पहाड़ी देखते हैं जिसके ऊपर एक विशाल चमकता हुआ मन्दिर है। आप मन्दिर की ओर जाते हैं। आप बहुत ही हल्का अनुभव करते हैं - मानों आप तैर रहे हैं। यह महसूस करें कि आप इस पथ पर अकेले नहीं हैं - ईश्वर पथ प्रदर्शन करता है व आपके साथ चलता है।

    • चमकीली खिली धूप का दिन है, आकाश गहरा नीला है। अब आप सफेद संगमरमर के मंदिर के सामने खड़े हैं जो धूप में झिलमिला रहा है। संगमरमर को आप अपने हाथ से छूएं। छाया में यह ठंडा है। जहां इस पर सूरज चमक रहा है वहां यह गरम है।

    • धीरे-धीरे आकाश रंग बदलता है। धुंधला प्रकाश होने लगता है। सभी स्थानों से आपको गीता, मंत्रों और प्रार्थनाओं की ध्वनि सुनाई देती है- ऐसी ध्वनि है जैसे कोई शुभकामनाएं दे रहा है।

    • आप मंदिर में प्रवेश करते हैं और देखते हैं कि भीतर यह पूरी तरह खाली है। यह आपके आन्तरिक स्व का मंदिर है। यह केवल आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा है। यह वैसा ही हो जाएगा जैसा रूप आप इसे देना चाहते हैं, अत: जैसे आप इसे सजाना चाहते हैं, सजा लें।

    • मंदिर के प्रत्येक पार्श्व में एक द्वार खुला है जिससे आप आकाश को देख सकते हैं। हर द्वार के माध्यम से आकाश का अन्य रंग, अन्य आयाम है। एक ओर कदाचित् चमकदार नीला दूसरी ओर पूरी तरह गहरा। एक ओर चमकदार लाल हो सकता है। दूसरी ओर पीला, गुलाबी, बैंगनी या संतरी। बिजली चमकती है। मंदिर से सभी दिशाओं से स्पंदन और ध्वनियां बाहर चमक उठती हैं। इस समस्त लीला में आप केन्द्र में खड़े हुए हैं जो आपके अपने स्व से प्रस्फुटित होती है।

    • मंदिर के भीतर आकाश के मध्य एक वेदिका की कल्पना करें। इसे फूलों, मोमबत्तियों (दीपों) और धूप अगरबत्तियों से - जैसा आप चाहें सजा लें। ईश्वर की आराध्य प्रतिमा का एक चित्र वेदिका पर रखें या केवल एक ज्योति स्थापित कर दें।

    • एक दिव्य शक्ति की, दिव्य प्रेम, प्रकाश और शान्ति की विद्यमानता महसूस करें।

    • महसूस करें कि आपका रूप किस प्रकार बदलता है, किस प्रकार यह चमकदार प्रकाश एक चमकते सितारे जैसा बन जाता है। आप इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक छोटी-सी चिंगारी नहीं हैं बल्कि स्वयं ब्रह्माण्ड का एक भाग हैं। आप सभी जीवधारियों के प्रति अपनी शुभकामनाओं और विचारों को उनकी ओर निदेशित करते हुए अपने प्रकाश को बाहर की ओर फैलने दें।

    • इसी समय सभी दिशाओं के प्रति सचेत रहने का प्रयत्न करें - अपने अस्तित्व की असीम अनंतता को जानें।

    • अब मंदिर सहित हर चीज को जाने दें - सर्वोच्च सत्ता के साथ योग और एकता को महसूस करें। अब आप स्वयं को एक पूरी तरह भिन्न आयाम में पाते हैं। यह प्रकाश सोना और चांदी की तरह ही चमकदार और झिलमिलाता है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड श्वास लेता है। आप ब्रह्माण्ड के फैलाव और सिकुडऩे को अनुभव करते हैं, जो शाश्वत रूप से आ रहा है, जा रहा है और फिर उदय हो रहा है। कोई रूप आगे अस्तित्व में नहीं है- केवल योग और पूर्ण एकता है।

    • सर्वोच्च के साथ योग की इस सर्वोच्च परमानन्द अवस्था में रहें। अपनी आत्मा की यात्रा को निराकार या एकाकी अवस्था में, आपके अनगिनत पूर्वकालीन जीवन चक्र की यात्रा को बिना देखे रहें। आप न तो दु:ख अनुभव करते हैं और न ही दर्द। आप ब्रह्माण्ड की आत्मा के साथ एक हैं। सभी जीवित वस्तुएं इस आत्मा के अणु कोष हैं। प्रत्येक वस्तु में एकता महसूस करें।

    • एक नये आयाम के साथ आगे जायें। आपके चहुँ ओर रंग बदलते हैं। वे संतरा, नीला, पीले, हरे और लाल में चमकते हैं। आप अपने आकार को आकाश से नीचे उड़कर आता हुआ और एक देवदूत के समान पृथ्वी पर अवतरित होता हुआ देखें।

    • आप अपने शरीर में, अपने आन्तरिक आकाश में ही एक बार फिर से हैं। आप प्रसन्न हैं और पूर्णरूपेण शुद्ध, देदीप्यमान और आध्यात्मिक शक्ति से परिपूर्ण महसूस करते हैं।

    • ॐ का उच्चारण 3 बार करें। और फिर मंत्र कहें :

      नाहमं कर्ता

      प्रभु दीप कर्ता

      महाप्रभु दीप कर्ता ही केवलं

      ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:

      मैं कर्ता नहीं हूँ

      प्रभु दीप कर्ता है

      केवल महाप्रभु दीप ही कर्ता है।

      ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:

  • अपने दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में रगड़ें, उनको अपने चेहरे पर रखें एवं अपनी आंखों, पलकों तथा चेहरे की मांसपेशियों को गरम करें। हथेलियों को इकट्ठा लाएं एवं दिव्य स्व के समक्ष प्रेम व आभार प्रकट करते हुए नमन करें। अपने नेत्र खोलें।