"भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के बीच सही संतुलन बनाएं और आपको दो सुदृढ़ पंख प्राप्त हो जायेंगे जिनसे आपकी आत्मा ईश्वर की ओर तेजी से बढ़ सकती है।"

योग के पथ पर आसनों, प्राणायामों और एकाग्रता से व्यवस्थित व क्रमबद्ध अभ्यास से ही प्रगति प्राप्त होती है। योग का पथ सदा ही सुगम नहीं है। इससे उत्पन होने वाली कठिनाइयों और बाधाओं का हल किया जाना चाहिए। अनुभव के साथ हम अपने उद्देश्य, लक्ष्य को अपनी दृष्टि में रखने के महत्व को समझते हैं और विश्वास के साथ निश्चयपूर्वक दृढ़ता से अभ्यास करते रहना जारी रखते हैं।

एकाग्रता के व्यायाम मन पर नियन्त्रण रखते हैं और हमें मानसिक व्यग्रता, बेचैनी के प्रति अधिक जागरूक कर देते हैं। यह व्यग्र मन आन्तरिक तनाव पैदा करता है, जो हमें लक्ष्य तक जाने वाले एक मात्र विचार को एकाग्रता के साथ अनुसरण करने से रोकता है। इस कारण, मन हमें प्राय: भटकाता या पथ भ्रष्ट करता रहता है।

योग मन को शान्त करता है और विविधीकरण (सत्य व असत्य की पहचान) की शक्ति विकसित करता है। विवेक बुद्धि का वह पहलू है जो हमें सही समझ का मार्ग दिखाता है और यह इन्द्रीय गोचर (अनुमान) कराता है कि सही निर्णय क्या है। शारीरिक श्वास प्रक्रियाओं और एकाग्रता-व्यायामों के अतिरिक्त सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यों में से एक कार्य, अब बुद्धि को प्रशिक्षित करना और इसका सही प्रकार से उपयोग करना है। योग हमारे भीतर 'बुद्धि के प्रकाश' को जलाता है, जिससे हमें स्पष्टता प्राप्त होती है और हम सच्ची वास्तविकता को पहचान पाने में समर्थ, योग्य हो जाते हैं।

ॐ कारं बिन्दु संयुक्तं नित्यं धायन्ति योगिनः ।

कामदं मोक्षदं चैव ॐ काराय नमो नमः ॥

मैं ब्रह्माण्ड के उद् गम-ॐ को नमन करता हूँ जो समस्त विश्व के अस्तित्व के स्रोत, हृदय में निवास करने वाला प्रकाश है।

ॐ का ध्यान पुनर्जन्म और मृत्यु से मुक्ति दिला देता है।

ब्रह्माण्ड की प्रत्येक वस्तु-दृश्य और अदृश्य ॐ से उद् भूत है, ॐ में विद्यमान है फिर उसी ॐ में समा जाती है।

ॐ सर्वोच्च, सर्वोपरि है। सभी योगी ॐ पर ध्यान लगाते हैं।

दिव्य ॐ को, प्रकाश, प्रेम, सत्य और ब्रह्माण्ड की व्यवस्था के स्रोत को, मेरे गहतनम हृदय से प्रणाम।