अवधि :
30-45 मिनट

इस व्यायाम के प्रत्येक भाग का अभ्यास कम से कम दो सप्ताह तक करना चाहिये।

अपने स्वयं के अच्छे गुणों का विश्लेषण

  • अपने गुणों यथा रूप-रंग, ज्ञान, योग्यताएं, प्रतिभाएं आदि को खोजें (लगभग 10 मिनट)।

  • परीक्षा करें कि ये गुण आपको क्या लाभ पहुंचाते हैं (लगभग 10 मिनट)।

  • यह सोचें कि आपके परिवेश में लोग आपको किस प्रकार देखते हैं (लगभग 10 मिनट)।

  • भावुकता के रूप में आप तटस्थ रहें और एक पर्यवेक्षक का स्थान बनाये रखें।

अपने स्वयं के दुर्गुणों का विश्लेषण

  • अपनी कमजोरियां खोजें और उनका विश्लेषण करें (लगभग 10 मिनट)।

  • यह परीक्षा करें कि यह दुर्गुण आपको क्या हानि पहुंचाते हैं (लगभग 10 मिनट)।

  • विचार करें कि आपके साथी इन दुर्गुणों के बारे में क्या सोचते हैं (लगभग 10 मिनट)।

  • इसके संबंध में अपनी स्थिति एक तटस्थ पर्यवेक्षक के रूप में ही रखें।

अपने स्वयं के गुणों व दुर्गुणों का स्वयं निर्धारण/मूल्याकंन

  • अब आप अपने तथा कथित अच्छे गुणों को समीक्षात्मक रूप में परखें। क्या वे सचमुच अच्छे और सहायक हैं, या वे केवल आपके अहम् को पुष्ट करते हैं अर्थात् आपने उनको दूसरे लोगों के सामने अच्छा दिखाने के लिए संजो रखा है। क्या वे अन्य जीवधारियों के साथ आपके संबंध को सहारा देते हैं या वे आपको उनसे अलग कर देते हैं? (लगभग 15 मिनट)।

  • अब आप अपने पर आरोपित या वास्तविक कमजोरियों और दोषों पर सूक्ष्मता से देखें, क्या वे वास्तव में बुरे हैं? या वे संभवत: हीनता और जटिलताओं की भावनाओं से ग्रसित हैं? यह कैसे उत्पन्न हुई, ये कैसे विकसित हुई? (लगभग 15 मिनट)

स्वयं को बाहरी नामों/चिह्नों से मुक्त करें

  • अपने गुणों, स्वभावों और विशेषताओं का विश्लेषण करना जारी रखें।

  • स्वयं को अपने पर्यावरण, चतुर्दिक के मतों से मुक्त करें। सभी "मुखौटों" और "रूपों" को फेंक दें, जो आपको अन्य लोगों के समक्ष मात्र अच्छा दिखाने का काम करते हैं। स्वयं को उन पूर्वाग्रहों और जटिलताओं से भी मुक्त कर लें जिनको आपने पर्यावरण से चुन लिया है। (लगभग 15 मिनट)

  • अपने भीतर उन गुणों का भी पता करें जो आपको स्वतंत्र और प्रसन्न रख सकते हैं। इसको महसूस करें कि यह गुण किस प्रकार विकसित होते हैं और आपके भीतर दिखाई देते हैं। (लगभग 15 मिनट)

बुरे स्वभाव (आदतों) का विश्लेषण

  • उन गुणों और स्वभावों के प्रति स्वयं सचेत रहें जो आपको वास्तव में रोकते हैं और हानिकारक हैं। अपने स्वयं के साथ आप ईमानदार रहें और कुछ छुपायें नहीं। किन्तु अपने उत्थान के लिए कोई जटिलता या अपराध की भावना न रखें, सदैव एक पर्यवेक्षक की स्थिति में बने रहें।

  • आपको रोकने वाले या हानि पहुंचाने वाले अवगुणों या दुर्गुणों को नियंत्रित करने वाली सार्थक, निश्चित संभावनाओं का पता करें।

  • इन बाधाओं को दूर कर लेने के बाद आप किस प्रकार जीवनयापन कर सकते हैं, इसकी कल्पना करें।

  • स्वयं को धिक्कारने या हीनता की भावना के बिना एक दयालु, सोद्देश्य पर्यवेक्षक की स्थिति में रहें।

शान्त भाव का विकास

  • शान्त भाव के गुणों और भावनाओं को अपने भीतर विकसित और दृश्यमान होने दें यथा- प्रेम, समझ, धैर्य, अनुकम्पा, क्षमाभाव, संतोष, शान्ति, श्रद्धा और मानवों, पशुओं व प्रकृति के प्रति सम्मान। (लगभग 15 मिनट)

  • अन्तर्मुखी होकर स्वयं को उन समस्याओं, डर-आशंकाओं, जटिलताओं और आत्म-धिक्कार से मुक्त करें जो आपको जकड़े रहती हैं। (लगभग 15 मिनट)

  • सदैव पर्यवेक्षक की स्थिति में रहें और सचेत रहें कि आप जो भी कुछ कर रहे हैं वह एक अभ्यास है : "मैं वह हूँ जो अभ्यास कर रहा हूँ"।