प्रारंभिक स्थिति :
खड़े हों।

ध्यान दें :
सन्तुलन पर।

श्वास :
सामान्य।

दोहराना :
1-2 बार।

अभ्यास :
उकड़ू मुद्रा में बैठ जायें। घुटने कुछ कुछ दूरी पर हैं। पैर परस्पर पास हैं। > आगे झुकें और हाथों को फर्श पर रखें, जिसमें अंगुलियां पीछे पैरों की ओर इंगित करती हैं। बाजू के अग्रभाग को इकट्ठा दबायें और पेट को कोहनियों का सहारा दें। छाती को भुजाओं के साथ रखें। टांगों को सीधा कर लें और फर्श से छूते हुये पंजों से शरीर को सहारा दें। टांगों को उठायें और सन्तुलन बनायें। > शरीर के ऊपरी भाग और टांगों को एक सीध में ले आयें। शरीर का भार एवं सन्तुलन अब केवल हाथों पर ही निर्भर है। > इस स्थिति में कुछ देर रहें और प्रारंभिक स्थिति में लौट आयें।

लाभ :
सूर्य जालिका और मणिपुर चक्र को प्रोत्साहित करके अवसाद को दूर करता है। यह फेफड़ों, यकृत, अग्नाशय और गुर्दों का शक्तिवर्धन करता है और मध्य पेट को मजबूत करता है। यह पाचन तंत्र में गैस बनना कम करता है। मुधमेह में लाभकारी है। सन्तुलन और एकाग्रता सुधारता है। पूरे शरीर की मांसपेशियों को सुदृढ़ करता है और हाथों के कंपन रोकने में सहायता करता है।

सावधानी :
यह आसन पेट की किसी भी शल्य चिकित्सा के बाद नहीं करना चाहिए। उच्च रक्तचाप, कालापानी या कलाइयों अथवा कोहनियों में कोई समस्या होने पर इस आसन से बचें। रजोधर्म, गर्भावस्था में भी इस आसन से बचें।

आसन इन निम्नलिखित श्रेणियों में शामिल किया जाता है:
अग्नाश्य को सक्रिय करना (मधुमेह के लिए) आसन और व्यायाम
अवसाद के लिए आसन और व्यायाम